Delhi Metro: मेट्रो इंजीनियर को गलत चार्जशीट देने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो को लगायी फटकार


वैसे तो दिल्ली मेट्रो रेल कोर्पोरेशन (DMRC) दिल्ली की जीवन रेखा कही जाती है और पूरी तरह से चकाचौध माहौल बनाये हुए है लेकिन इस संगठन के चमचमाते चेहरे के पीछे कितनी कालिख जमी हुई है ये अब सामने आने लगी है. दिल्ली मेट्रो को शोहरत के इस ऊंचाई पर पहुँचाने वाले मेट्रो कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. आये दिन गैर-कानूनी तरीके से मेहनती और ईमानदार कर्मचारियों की मेट्रो प्रबंधन द्वारा बर्खास्तगी के मामले सामने आते रहे हैं और मेट्रो कर्मचारियों ने समय - समय पर तानाशाही और मेट्रो में व्याप्त धांधली और भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज भी उठायी हैं लेकिन दिल्ली मेट्रो की झूठी शान और प्रतिष्ठा ने हमेशा इनके आवाज को मीडिया को खरीद फरोक्त कर दबाने की कोशिश की है.

हाल ही में जब एक मेट्रो इंजीनियर ने दिल्ली मेट्रो में सहायक प्रबंधकों की विभागीय भर्तीयों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो दिल्ली मेट्रो के अधिकारीयों ने उस पर फर्जी आरोप लगाकर चार्जशीट दे दी. उसके जवाब को दरकिनार करते हुए उसके खिलाफ जांच बैठा दी लेकिन इस मेट्रो इंजीनियर ने हिम्मत करके मामले को माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया. माननीय न्यायालय सभी तथ्यों को गंभीरता से लेते हुए मेट्रो इंजीनियर के विरुद्द पूर्व में जारी सभी पेनाल्टी आदेशों और वर्तमान विभागीय कार्यवाही पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया तथा गलत तरीके से चार्जशीट जारी करने तथा मेट्रो में भर्तियों में हो रही धांधली के लिए दिल्ली मेट्रो प्रबंधन को कड़ी फटकार लगायी.

मामले से सम्बंधित कुछ अंश जिसे पढ़कर आपकी भी आँखे खुल जाएँगी और दिल्ली मेट्रो की चमचमाहट के पीछे की गन्दगी साफ़ - साफ़ दिखने लगेगी :-

1. दिनांक 26 नवम्बर 2015 को दिल्ली मेट्रो के Sr. DGM/E&M राजेश अग्रवाल ने मेट्रो इंजीनियर प्रियरंजन राज सिंह के खिलाफ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर चार्ज शीट जारी की जिसका जवाब इन्जीनियर ने तय सीमा के अन्दर दे दी लेकिन बिना उसके जवाब को संज्ञान में लिए और बिना किसी जांच के उसके अधीनस्थ ऑफिसर मेनेजर/TR-6 ने इंजीनियर के खिलाफ पेनाल्टी आर्डर जारी कर दी. जब इंजिनीयर ने इस पेनल्टी के खिलाफ  नियमानुशार अपने विभागीय प्रमुख GM/Electrical विवेक अग्रवाल के समक्ष अपील फाइल की तो अपील का निस्तारण विवेक अग्रवाल के बजाय उसके अधीनस्थ ऑफिसर AGM/Electrical पंकज सक्सेना ने डिस्पोज ऑफ कर दी. अपने ऑर्डर में पंकज सक्सेना ने माना कि इंजीनियर प्रियरंजन राज सिंह के खिलाफ जारी चार्जशीट नियमों के विरुद्ध थी और जारीकर्ता अधिकारी Sr. DGM/Electrical राजेश अग्रवाल को दिल्ली मेट्रो के Disciplinary नियमों की जानकारी नहीं थी. इससे साफ़ मतलब निकालता है कि दिल्ली मेट्रो ने incompetent और नालायक अधिकारीयों की भर्ती कर रखी है जो कि केवल मोटी तनख्वाह पाने और मेट्रो में  धांधली करने के काम कर रहे हैं. माननीय दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मसले को काफी गंभीरता से लिया है.

2. दिनांक 28 जनवरी 2016 को दिल्ली मेट्रो के एक Dy.HOD लेवल के अधिकारी सुबोध पाण्डेय ने घोस्ट ऑफिसर का रूप लेकर प्रियरंजन राज सिंह को दूसरी चार्ज शीट जारी कर दी. इस चार्ज मेमो में न तो जारीकर्ता के नाम हैं न पद का विवरण और केवल एक sign नजर आ रहा है जिससे जारीकर्ता को पहचानना मुश्किल है. हालाँकि मेट्रो इंजीनियर ने नियमानुशार तय सीमा में अपने जवाब फाइल किये और चार्जों के सपोर्ट में कुछ डाक्यूमेंट्स की मांग की लेकिन उसकी मांग को नजरंदाज करते हुए जांच कमिटी बैठाई गयी जिसमें जांच अधिकारी अनिल कुमार गोयल (वरिष्ठ लीगल अधिकारी) और प्रजेंटिंग ऑफिसर आनंद पंकज (ट्रेनिंग कोर्डिनेटर) को नियुक्त किया गया. ये दोनों भी नालायक और गैरजिम्मेदार अधिकारीयों की तरह मैनेजमेंट के इशारे पर बिना पुरे चार्ज मेमो को ध्यान में रखे जांच शुरू कर दी. अनिल कुमार गोयल वही अधिकारी है जिसे पूर्व RTI सुपरवाइजर विनोद शाह को निलंबित करने के लिए फर्जी जांच रिपोर्ट बनाने के लिए दिल्ली मेट्रो ने तीन महीने की extra तनख्वाह दी थी जिसमे आनंद पंकज ने भी मैनेजमेंट के इशारों पर काम किया. इस मामले को भी दिल्ली उच्च नयायालय ने काफी गंभीरता से ली और दिल्ली मेट्रो प्रबंधन को जमकर फटकार लगायी.


पुरे मामले को गंभीरता से लेते हुए माननीय दिल्ली हाई कोर्ट ने सात पन्नों का प्रारंभिक स्थगन आदेश जारी किया जो इस प्रकार है.
माननीय दिल्ली हाई कोर्ट के पुरे आदेश की कॉपी PDF में डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें 







    

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